अधूरे सपनों के परे: यादों का सफर
दूर अपनों से, बीते हैं सपनों के लिए यह रातें, एक अजनबी शहर में, रहे हैं हम बिखरे बिखरे। सपनों की खातिर छोड़ी है जो आँगन वाली बातें, मर भी जाऊं तो, होंगी यादें, न होंगे अधूरे सपने। अपनों की याद, अपनों का प्यार, सही बहुत हैं महंगे, पर मरना चाहता हूँ यादों के साथ, न कि अधूरे सपनों के संगे। बस एक विश्वास है, कि सपने पूरे होंगे अपने, तब तक जीवन का हर पल, बस यादों के साथ ही जीने। यही विचार है जो मेरा, कि सपने अधूरे न रहें, मरूँ तो सिर्फ यादों के साथ, न कि अधूरे सपनों के लिए।